EDUCATIONALVISION DOCUMENT(2024-27)
ViewRegd. No.: 4-1946-47
।। श्री ।।
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EDUCATIONALVISION DOCUMENT(2024-27)
ViewShri Khandelwal Vaishy Hitkarini Sabha (SKVHS) is a distinguished organization, established in 1947, dedicated to the welfare and development of the Khandelwal community of Jaipur, transcending barriers of caste, creed, gender, and religion. With a profound commitment to social service, the Sabha undertakes a variety of initiatives aimed at uplifting the underprivileged and fostering a spirit of unity and progress within the community. Its activities encompass a broad range of societal contributions, from providing essential services like food, clothing, shelter, and medical aid to the needy, to promoting cultural and religious harmony through the establishment of cultural centers, libraries, and places of worship.
उद्देश्य:
बिना किसी वर्ण, लिंग, जाति एवं धर्म के भेदभाव तथा बिना लाभवृत्ति के मुख्यतः निम्न जनोपयोगी कार्य करना।
(क) वैज्ञानिक, साहित्यिक तकनीकी तथा अन्य प्रकार की जनोपयोगी शिक्षा प्रदान करना एवं उसकी व्यवस्था करना।
(ख) सांस्कृतिक केन्द्रों, पुस्तकालयों, वाचनालयों, व्यायामशालाओं, कला केन्द्रों, रोजगारशालाओं और अतिथिगृहों आदि की स्थापना करना और उनका संचालन करना।
(ग) गरीब, अनाथ, अपाहिज, विधवाओं, बालक-बालिकाओं तथा वृद्ध पुरुषों को आवश्यकतानुसार निःशुल्क भोजन, वस्त्र, आवास, चिकित्सा, शिक्षा की सुविधायें एवं आर्थिक सहायता प्रदान करने का यथाशक्ति प्रयास करना एवं रोजगारहीन बन्धुओं को रोजगार दिलाने में मदद करना।
(घ) छात्रावासों की स्थापना व उनका संचालन करना।
(ङ) जन साधारण की आर्थिक, सांस्कृतिक, सामाजिक तथा नैतिक उन्नति करना।
(च) संस्था की चल व अचल सम्पत्ति की सुरक्षा एवं उन्नति करना तथा आवश्यकता व सुविधा के लिए चल या अचल सम्पत्ति खरीदना, लीज अथवा किराये पर लेना या देना, भेंट द्वारा प्राप्त करना, नई ईमारत बनवाना, संस्था की सम्पत्ति का आवश्यकतानुसार जीर्णोद्धार या रद्दोबदल करना और अन्य सुविधायें या अधिकार प्राप्त करना।
(छ) स्वयंसेवक दलों एवं सेवाभावी प्रवृत्तियों की स्थापना और उनका संचालन करना।
(ज) आवश्यक आंकडे संकलन करना तथा संस्था के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए पत्र-पत्रिकाएँ, स्मारिका आदि प्रकाशित करना।
(इा) संस्था के कोष वृद्धि के लिए दान, चंदा या अन्य किसी प्रकार से सहायता प्राप्त करना।
(ञ) संस्था की अचल सम्पत्ति के विकास हेतु ऋण प्राप्त करना एवं ऋण प्राप्त करने हेतु समुचित कार्यवाही करना।
(ट) समाज में कुप्रथाऐं समाप्त करने और सुप्रथाऐं प्रचलित करने का प्रयास करना।
(ठ) समाज में धार्मिक भावनाओं के अनुकूल वातावरण बनाने के लिए प्रयास करना एवं धार्मिक केन्द्र, मन्दिर, धर्मशाला, जनोपयोगी भवन आदि की स्थापना एवं संचालन करना और श्रेष्ठ साहित्य के प्रचार-प्रसार में सहयोग देना।
(ड) बसन्त पंचमी को खण्डेलवाल दिवस मनाने की व्यवस्था करना तथा
अन्य आवश्यक समारोहों का आयोजन करना।
(ढ) आवश्यकतानुसार ऐसे समस्त कार्य करना जो संस्था के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए हितकर या आवश्यक हो।
Saint Shri Sundardas Ji of the Khandelwal community was born in 1596 in Busro Ka Dhundha, Vyas Mohalla, Dausa, into the Busar Gotra family. His birth occurred at noon on Chaitra Navami, 1653 Samvat. His father was named Parmanand, and his mother was 'Sati' from the Amer Sokhiya family.
The messengers of global brotherhood, guides of humanity, world-renowned saint and poet laureate Daduji's disciple, Shri Sundardas Ji, holds a place of high esteem in spiritual, literary, social, and religious realms, comparable and in some aspects superior to Sur, Tulsidas, Kabir, and Nanak. He is also regarded as the second Shankaracharya and Acharya. Just as Goswami Tulsidas's name is immortal with Ramcharit Manas, similarly, Shri Sundardas Ji, the creator of eternal literary works like Gyan Samudra, Sundarvilas, and others (total 48 works), and a revered saint, spiritual seeker, religious and social reformer, remains an eternal figure in the spiritual domain.